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नज़्म
एक दिन हज़रत-ए-फ़ारूक़ ने मिम्बर पे कहा
क्या तुम्हें हुक्म जो कुछ दूँ तो करोगे मंज़ूर
शिबली नोमानी
नज़्म
क़स्र-ए-शाही में कि मुमकिन नहीं ग़ैरों का गुज़र
एक दिन नूर-जहाँ बाम पे थी जल्वा-फ़िगन
शिबली नोमानी
नज़्म
दर्द-ए-दिल सुनते नहीं मुझ को सुना सकते नहीं
बीवी और बच्चे भी खाना साथ खा सकते नहीं
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
दर्द है दिल के लिए और दिल इंसाँ के लिए
ताज़गी बर्ग-ओ-समर की चमनिस्ताँ के लिए